
razak khan life story

Razak Khan Biography
फ़िल्मी परिचय और पहचान
रज़ाक खान को लोग उनके नाम से कम और भाई गिरी वाले फ़िल्मी नामो से ज़्यादा जानते है
जैसे – निंजा चाचा,मुन्ना मोबाइल, मकोड़ी पहलवान, टक्कर पहलवान,बल्लू पहलवान, बुलडोज़र भाई, लकी चिकना, रज्जु तबेला, कलीम ढीला, तलवार सिंह छुरा, काला भाई, खुजली भाई, मुन्ना हटेला, बाबू बिसलेरी, बाबू करेला, तिल्ली भाई और कई अन्य, वर्ष १९९० से २०१६ तक उन्होंने तक़रीबन ९० फिल्मो में काम किया था I

Razak khan as Takkar pahalwan in ankhiyan se goli maare
रज़ाक खान के निभाए ये अतरंगी किरदार उनके स्टाइल और एक्टिंग से भारतीय सिनेमा के यादगार चरित्र बन गए उन्होंने भाईगिरी वाले अंदाज़ में अपनी डायलाग कहते हुए दर्शको को खूब हंसाया I
उनका कद भले ५ फुट ९ इंच था पर फिल्मो में उनका कद हीरो के बराबर होता था शरीर, बालो और चेहरे और चलने के अंदाज़ को देख कर ही हंसी आ जाया करती थी उन्होंने कादर खान और गोविंदा के साथ कई फिल्मो में ऐसी तिकड़ी बनाई की हर फिल्म में कॉमिक करैक्टर बना कर उन्हें पेश किया जाता था
हालाँकि उनके रोल फिल्म में ज़्यादा लम्बे नहीं होते थे पर उन्होंने हर किरदार को ऐसा निभाया की आज भी लोग उन्हें याद करते है
आइये आज जानते है कौन थे रज़ाक खान

जन्म और परिवार
रज़ाक खान का जन्म २८ मार्च १९५१ को भयखला मुंबई में हुआ था इनके पिता अफगानिस्तानी थे और वो कई साल पहले मुंबई आ कर रहने लगे थे, रज़ाक खान को प्यार से सभी दिलबर नाम से पुकारा करते थे और उनका पूरा नाम था अब्दुर रज़ाक खान

बचपन
रज़ाक खान का बचपन कई राज्यों की भाषा सुनते और कल्चर को जानते हुए गुज़रा, क्योंकि जहाँ ये रहते थे वहाँ पर कई परिवार और रहा करते थे और उनमें तमिल तेलुगु कन्नड़, पारसी, मराठी, गुजराती, कोंकणी जैसे कई राज्यों से आये हुए लोग रहा करते थे इन् परिवारों के बच्चो के साथ खेलते कूदते बड़े हुए थे रज़ाक, इसीलिए बचपन से ही कई भाषाओ को और कल्चर्स को करीब से जाना जो उन्हें एक्टिंग करियर में बहुत काम आया I
रज़ाक बचपन से फिल्में देखन के शौक़ीन थे और उन् एक्टर्स की कॉपी करके अपने दोस्तों को दिखाया करते थे
दिलीप कुमार और मेहमूद की फिल्मो ने इन् पर ज़्यादा असर डाला और रज़ाक को फिल्मो की दीवानगी हो गई
जब दिलीप कुमार की अंदाज़ फिल्म देखि तो उनकी तरह तलवार बाज़ी करते थे फर्क सिर्फ इतना था तलवार की जगह हाथ में चमचा उठा कर एक्ट करते थे I

रज़ाक से नफरत करते थे
रज़ाक खान के दोस्तों की माताये अपने बेटो को कहती थी की इस दिलबर से दूर रहा करो ये बकवास लड़का है हर वक़्त फ़िल्मी बना फिरता है इसकी शकल देखो कौन लेगा इसको फिल्मो में, न ही कोई इसको जानता है बॉलीवुड में , फालतू ये अपना टाइम ख़राब करता है न पढता है न ही कोई काम करता है इसका साथ छोड़ दो नहीं तो ये तुम को भी बर्बाद कर देगा
पर रज़ाक खान को उनकी नफरत से कोई फर्क नहीं पड़ता था वो बस अपने सपनो में जीते थे I
पहला मौका
वर्ष १९९० में एक दिन रज़ाक खान निकल पड़े फिल्मो में काम करने का सपना लिए और उनकी इस दीवानगी के चलते ऊपरवाले ने उनकी सुनी और कुछ फिल्मो में भीड़ वाले रोल करे पर सपना तो चरित्र निभाने का था न की भीड़ का हिस्सा बनना इन्हे स्टेटस में रहना पसंद था एक दिन किस्मत रंग ले आई एक दिन ये एक पांच सितारा होटल में चाय पी रहे थे और इन्हे वहां लगातार दो आँखें देख रही थी वो आँखें थी जानेमाने फिल्म लेखक और गीतकार जावेद अख्तर की कुछ सोच कर जावेद अख्तर ने रज़ाक को एक चिट पर लिख कर वेटर के हाथ ये भिजवा दिया – मैं जावेद अख्तर हूँ क्या में तुम्हारे साथ बैठ सकता हूँ
चिट पढ़ कर रज़ाक के होश उड़ गए और उन्होंने फिर जावेद अख्तर से मुलाकात की और जावेद अख्तर ने इन्हे मिलाया निर्देशक सतीश कौशिक से, उस वक़्त सतीश कौशिक निर्माता बोनी कपूर की फिल्म का निर्देशन कर रहे थे ये बहुत मॅहगी फिल्म थी सतीश कौशिक ने इस फिल्म में केशव का किरदार दिया रज़ाक को और वो फिल्म थी – रूप की रानी चोरों का राजा –
इसके बाद इसी फिल्म को देख कर राजीव राय मोहरा फिल्म में रिज़वान की भूमिका ऑफर कर दी

इसके बाद और क्या हुआ ये जानिए इस वीडियो बायोग्राफी में
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शोध कर्ता और आलेख
बॉलीवुड पंडित तरुण व्यास
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